Menu

भारतीय संस्कृति के प्रतीक आर्य पुत्र परम श्रद्धेय चौ0 मित्रसेन आर्य ने अपने जीवन काल में वह सब पुरूषार्थ किया जो एक व्यक्ति को एक आम मानव से महापुरूष बनाता है। उन्हें अपने जीवन में जहाँ भी अन्धेरा दिखाई दिया, वहीं दीपक जला कर खड़े हो गये और आजीवन समाज में उजाला करते रहे। उन्होंने गहन चिन्तन किया और इस निर्णय पर पहुंचे कि समाज में अघ्यात्म, वैदिक सभ्यता, शिक्षा, उच्च आदर्श, स्वास्थ्य एवं भाई-चारा स्थापित करने के लिए और अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, अराजकता समाप्त करने के लिए एक ही शस्त्र है और वह है ‘शिक्षा और पुरूषार्थ’।

आगे बढ़ें