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हमारी संस्थान के सिद्धांत

शिक्षा, संस्कार और सेवा के माध्यम से मानव मात्र के कल्याण के लिए कार्य करना जिससे प्रत्येक मनुष्य शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति के मार्ग पर चलता हुआ सच्चे अर्थों में इस प्रकार का मनुष्य बने जिसकी कल्पना महर्षि दयानन्द सरस्वती ने निम्नलिखित रूप में की है-

मनुष्य की परिभाषा
मनुष्य उसी को कहा जाता है जो मननशील होकर स्वात्मवत् अन्यों के सुख-दुःख और हानि-लाभ को समझे। अन्यायकारी बलवान् से भी न डरे और धर्मात्मा निर्बल से भी डरता रहे। इतना ही नहीं किन्तु अपने सर्वसामर्थय से धर्मात्माओं की चाहे वे महा अनाथ, निर्बल और गुणरहित हों-उनकी रक्षा, उन्नति, प्रियाचरण और अधर्मी चाहे चक्रवर्ती, सनाथ, महाबलवान् और गुणवान् भी हो तथापि उसका नाश, अवनति और अप्रियाचरण सदा किया करे, अर्थात् जहां तक हो सके वहां तक अन्यायकारियों के बल की हानि और न्यायकारियों के बल की उन्नति सर्वथा किया करे। इस काम से चाहे उसको कितना ही दारूण दुःख प्राप्त हो, चाहे प्राण भी भले ही जावें परन्तु इस मनुष्यपन रूप धर्म से पृथक् कभी न होवे।

(महर्षि दयानन्द सरस्वती-स्वमन्तव्यामन्तव्य प्रकाश)