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संस्थान

!!ओउम!!
मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे
समाज को समर्पित: परममित्र मानव निर्माण संस्थान

भारतीय संस्कृति के प्रतीक आर्य पुत्र परम श्रद्धेय चौ0 मित्रसेन आर्य ने अपने जीवन काल में वह सब पुरूषार्थ किया जो एक व्यक्ति को एक आम मानव से महापुरूष बनाता है। उन्हें अपने जीवन में जहाँ भी अन्धेरा दिखाई दिया, वहीं दीपक जला कर खड़े हो गये और आजीवन समाज में उजाला करते रहे। उन्होंने गहन चिन्तन किया और इस निर्णय पर पहुँचे कि समाज में अध्यात्म, वैदिक सभ्यता, शिक्षा, उच्च आदर्श, स्वास्थ्य एवं भाई-चारा स्थापित करने के लिए और अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, अराजकता समाप्त करने के लिए एक ही शस्त्र है और वह है ‘शिक्षा और पुरूषार्थ’।

उन्होंने अपने विचार को मूर्त रूप देने के लिए 1997 में परम मित्र मानव निर्माण संस्थान की स्थापना की। चौ0 मित्रसेन जी द्वारा स्थापित परम मित्र मानव निर्माण संस्थान ने उनके विचार को साकार करने के लिए उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए शिक्षा, अध्यात्म, शालीनता, सहनशीलता, स्वास्थ्य, वैदिक सभ्यता के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान किया है। अभावग्रस्त लोगों के दुःखों को दूर करने का यथासम्भव प्रयास किया है। बल्कि यों कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उन्होंने अपने जीवन में एक भारतीय होने का और मानवता का ऐसा धर्म निभाया जिस पर प्रत्येक भारतीय गर्व कर सकता है। आज परम मित्र मानव निर्माण संस्थान शिक्षा, स्वास्थ्य (चिकित्सा-शिविर) नारी सशक्तिकरण, रोजगार उन्मुखी दक्षता प्रशिक्षण, योग, चरित्र-निर्माण, प्रतिभा सम्मान छात्रवृत्ति, खेलकूद, पर्यावरण संरक्षण जैसे अन्य सामाजिक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान कर रहा है।