Menu

शिक्षामित्र

शिक्षा मानवता का भूषण है। परममित्र मानव निर्माण संस्थान ने शिक्षा के महत्त्व का मूल्यांकन करते हुए अपने स्थापना काल से ही शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावी और परिणाम दायी कार्य किये हैं। संस्थान द्वारा जहाँ मेडिकल, इंजीनियरिंग व टेक्नालॉजी के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स का निर्माण कर राष्ट्र के विनिर्माण में विशिष्ट भूमिका निभाई जा रही है, वहीँ आधुनिक प्रतिस्पर्धा के युग में आम जन को मुख्य धारा से जोड़ने और अपनी प्रतिभा चमकाने के अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से नवीनतम संसाधनों से सज्जित इंडस पब्लिक स्कूल्स की सुस्थापित श्रृंखला चलाई जा रही है।

परम मित्र मानव निर्माण संस्थान के संस्थापक स्व. चौधरी मित्रसेन आर्य चूँकि एक निष्ठावान आर्य समाजी और वैदिक परम्परा से अनुस्यूत महामानव थे। अतः उनका स्वाभाविक सिद्धांत था- शिक्षा से कोई वंचित न रहे। कन्याओ की शिक्षा को समाज के उत्थान के लिये सर्वोपरि मानते हुए उन्होंने परम् मित्र कन्या विद्या निकेतन की स्थापना की जिसमे सहस्रों कन्याओं के जीवन का निर्माण हुआ।

परम मित्र मानव निर्माण संस्थान का महत्वपूर्ण कार्य गरीब बच्चों को शिक्षित कर उनके अन्धकार मय जीवन में प्रकाश फैलाना भी है। “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाओ। यह प्रार्थना भारतीय संस्कृति का एक मूल स्तम्भ है। प्रकाश में व्यक्ति सब कुछ देख सकता है, लेकिन अंधकार में नहीं देख सकता है। प्रकाश का यहाँ अर्थ शिक्षा से है। शिक्षा से व्यक्ति का अंधकार दूर हो जाता है। शिक्षा से ही उसकी सोयी हुई इन्द्रियाँ जाग जाती हैं। शिक्षा से ही व्यक्ति की कार्यक्षमता में बढ़ोत्तरी होती है, जो उसके जीवन को प्रगति के पथ पर ले जाती है। परम मित्र मानव निर्माण संस्थान गरीब बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके अंतर्गत विद्यार्थियों को फीस माफी के साथ-साथ मुफ्त किताबें, मुफ्त ड्रेस और अन्य पाठ्य सामग्री भी निशुल्क दी जाती हैं।

आज कंप्यूटर का हमारे जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। परम मित्र मानव निर्माण संस्थान द्वारा गरीब बच्चों के लिए निशुल्क कंप्यूटर शिक्षा की व्यवस्था भी की गई है, जिससे विद्यार्थी अपने जीवन के लक्ष्यों को पूरा कर सकें। सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भी मानते थे कि मनुष्य को सही अर्थों में मनुष्य बनने के लिए शिक्षा की जरूरत होती है। डाॅ. राधाकृष्णन के अनुसार “शिक्षा वह है, जो मनुष्य को ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ उनके हृदय और आत्मा का विकास करती है।” डाॅ. राधाकृष्णन के विचार से शिक्षा का माध्यम मातृभाषा में होना चाहिए क्योंकि विदेशी भाषा में भारत के लोग मौलिक चिंतन नहीं कर सकते। शिक्षा व्यक्ति को स्वयं के विकास के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के विकास के लिए भी प्रेरणा देती है।

शिक्षा के महत्व को बताते हुए स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है कि “वास्तविक शिक्षा वही है, जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सकें, हम अपना चरित्र गठन कर सकें और हम अपने विचारों का सामंजस्य कर सकें, वास्तव में यही वास्तविक शिक्षा होगी।” स्वामी जी भारत में ऐसी शिक्षा के समर्थक थे, जिसमें उनके अपने आदर्शवाद के साथ-साथ पाश्चात्य कुशलता का सामंजस्य हो। उनका मानना था कि लोगों को आत्मनिर्भर बनना अति आवश्यक है।

शिक्षा का दायरा छोटा न होकर काफी बड़ा है। व्यक्ति जीवन से लेकर मृत्यु तक शिक्षा का ज्ञान प्राप्त करता है। पुराने समय में शिक्षा गुरूकुलों में हुआ करती थी, जहाँ छात्र शिक्षा ग्रहण करके ही अपने घर वापस लौटता था। आजकल हर जगह सरकारी और गैर-सरकारी विद्यालयों में शिक्षण कार्य किया जाता है। छात्र जब पढ़ने के लिए विद्यालय जाना शुरू करता है, तब उसका मानसिक स्तर धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। उसके दिमाग में धीरे-धीरे प्रश्न उठने लगते हैं, सब प्रश्नों का उत्तर उसे शिक्षा से ही मिलता है।

विद्या सर्वश्रेष्ठ धन है, इसे चोर भी नहीं चुरा सकता है। विद्या ही एकमात्र ऐसी चीज है, जो बाँटने से बढ़ती है। शिक्षा के कारण ही अनेकों आविष्कार हुए हैं। इन आविष्कारों के कारण ही मनुष्य का जीवन पहले से काफी आसान हो गया है। शिक्षा की वजह से ही व्यापार में तरक्की होती है और देश की आय भी बढ़ती है।

परम मित्र मानव निर्माण संस्थान द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की लड़कियों के लिए सिलाई, कढ़ाई और बुनाई की शिक्षा निशुल्क दी जाती है। वर्तमान समय में सरकार ने 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की सुविधा के लिए भारतीय संविधान में विभिन्न लेख जोड़े गए हैं।

इतिहास साक्षी है कि अशिक्षित जाति में संस्कृति नहीं होती है। पूर्व-पाषाण काल और उत्तर-पाषाण काल के लोग अशिक्षित थे। केवल आर्य जाति ही शिक्षित थी। शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के बराबर है, अतः परम मित्र मानव निर्माण संस्थान का उद्देश्य निरक्षरता के अंधकार को ज्ञान के प्रकाश से दूर करने के लिए सदैव कार्यरत रहना है।